सदेव कमजोर की मदद करें
अनुज गर्ग,
प्रबंध निदेशक,
ईयान स्कूल ऑफ़ मॉस कम्युनिकेशन
आप सभी ने बचपन में सिद्धार्थ और देवदत की कहानी
पढ़ी होगी। यदि नहीं तो बता दें । सिद्धार्थ गौतम बुद्ध के बचपन का नाम था और
देवदत उनके चचेरे भाई थे। एक बार देवदत ने अपने तीर से एक हंस को मार गिराया । जब सिद्धार्थ
ने उस हंस को तड़पते हुए देखा तो वो उसे उठा लाए और उसका उपचार करने लगे वहीं
देवदत आ गया और कहने लगा इस हंस को मेंने मारा है और इस पर मेरा अधिकार है । वहीं
सिद्धार्थ ने कहा इस हंस को में तड़पता उठा कर लाया हूं मेंने ही इसका उपचार कर के
इसकी जान बचाई है और मारने वाले से बचाने वाला महान होता है अत: इस पर मेरा अधिकार है ।
दोनो लड़ते हुए राजा सुद्धोधन के पास पहुंचे जो सिद्धार्थ के पिता थे । राजा ने
कहा एक काम करो इस हंस को खुला छोड़ दो जिसके पास यह स्वंय जाएगा उसी का अधिकार इस
पर होगा । दोनो ने राजा की बात मान ली और हंस को मुक्त कर दिया । हंस ने दोनो की
तरफ देखा और सिद्धार्थ के पास चला गया ।
मेरा यहां इस कहनी से यह तत्पर्य है कि जीवन में
सदेव कमजोर की मदद करो । चाहे वो कितनी भी छोटी ही क्यों न हो क्योंकि आप जब भी
ऐसी मदद करोगे तो आप जीतोगे और आपको संतुष्टी मिलेगी । चाहे आपकी इस छोटी सी
भूमिका से इस देश में या समाज में तुरंत कोई बड़ा परिवर्तन नहीं आए, परंतु यदि हम
सब ऐसा करने लगेंगे तो धीरे-धीरे इसके परिणाम अवश्य देखने को मिलेंगे । यह सत्य है कि हमारा
समाज गैर बराबरी पर आधारित समाज है । कानून या संविधान चाहे कुछ भी कहे सच्चाई यही
है कि कमजोर ही सदा पीटता और पीसता रहता है । विकास का फाएदा भी ताकतवरों को ही
मिलता है । बल्कि कई बार तो यह कमजोरों की कीमत पर होता है जैसे फ्लाईओवरों को ही
ले लीजिए । ये इसलिए बनते हैं कि कार तथा बड़े वाहन फराटे से जा सकें परंतु पैदल
यात्रीयों के लिए बने फुटपाथों पर अतिक्रमण रहता है । शासकों के दिमाग में कार
वालों की समस्याएं तो होती है परंतु पैदल यात्रीयों की नहीं, ये तमाम लोग जो गरीब
और कमजोर हैं, उनके लिए भी हम कभी कभी अपनी छोटी सी भूमिका निभा सकते हैं । वरना
बस यह है कि, खुद को देवदत की सोच से अलग करें और अपने अंदर के सिद्धार्थ को जगाएं
और स्वीकार करें की इस देश में हंसों को भी रहने, खाने और जीने का अधिकार है
।
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