एक्टिंग का मतलब सिर्फ़ बॉलीवुड
या हॉलीवुड ही नहीं होता। इसके अंदर बहुत गहराई है जिसमें डूबने के बाद, ज़िंदगी जीने का आपका नज़रिया ही बदल
जाएगा। जब आप
एक्टिंग सीखने लगते हैं और एक्टिंग करने लगते हैं तब समझ में आने लगता है कि
एक्टिंग सिर्फ़ ग्लैमर नहीं है, सिर्फ़
चकाचौंध नहीं है, बल्कि
आत्मा को आत्मिक आनन्द देने वाली कला है|
हालाँकि ये सच है कि ज़्यादातर
लोग और युवा फ़िल्मों की चमक-दमक, नाम और
पैसा देखकर ही एक्टिंग की ओर आकर्षित होते हैं लेकिन जो भी आप पर्दे पर देखते हैं, दरअसल वो तो एक बहुत बड़ी टीम का
प्रयास है, एक
प्रोडक्ट है। कहानी के संदेश को दर्शकों तक पहुँचाने वाला एक्टर भी इसी टीम का एक
हिस्सा मात्र हैl
लेकिन चूँकि एक्टर का काम
मानवीय संवेदनाओं से जुड़ा होता है इसलिए ये अत्यन्त दुष्कर और जटिल काम होता है
क्योंकि इसमें आप अपने आप को भूलकर कुछ और बन जाते हैं, कुछ और हो जाते हैं आप वो बन जाते हैं जो आप वास्तविक
ज़िंदगी में नहीं हैं अगर आप ख़ुद से अलग होना नहीं सीखेंगे तो आप दूसरे पात्र में
भी नहीं ढल सकते। ये एक तरह से परकाया प्रवेश जैसा काम है, जिसमें जैसे आप किसी दूसरे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और
फिर उसी के अनुरूप अपनी भावनाओं और संवेदनाओं को प्रकट करते हैं।
जब आप अभिनय से जुड़ जाते हैं
तो फिर हर बार आप ख़ुद को ही नहीं प्रस्तुत कर सकते आपको कई अन्य तरह के किरदार भी निभाने होते हैं, जो आप जैसे नहीं हैं इसीलिए एक्टिंग
सीखते हुए आप ख़ुद से अलग होना सीखते हैं और दूसरी तरह के इंसान (पात्र/Character) बनने के लिए दूसरे इंसानों की भावनाओं
को गहराई से जानने समझने लगते हैं |
आप एक से अनेक होने लगते हैं।
ये आपके जीवन का विस्तार है इस प्रक्रिया में कई तरह के किरदारों से आप को
वार्तालाप करना होता है दूसरे किरदारों से संवाद करते हुए और ख़ुद भी कई किरदार
जीते हुए आप ख़ुद से भी वार्तालाप करना सीख जाते हैं, अपने आप से बातें करने लगते हैं, अंतरमन या अंतरआत्मा से बातें करने
लगते हैं, अपने को
पहचानने लगते है। रिश्ते-नाते, उनके
बंधन और भावनाएं इन्हें आप समझने लगते हैं। साथ ही आपकी संवेदनाओं और भावनाओं का
दायरा बढ़ने लगता है और ज़िंदगी को आप एक अलग ही नज़रिए से देखने लगते हैं।
ज़िंदगी लम्हा-दर-लम्हा नई लगती
जाती है। अपने आप में एक नयापन महसूस होने लगता है। एक्टिंग आपको ज़िंदगी में भी
सहज बना देती है। आत्मविश्वासी बनाती है, अच्छा इंसान बनाती है। लेकिन ये आत्मिक आनन्द उसी को प्राप्त
हो सकता है जो पूरे मन से अभिनय को अपनाता है, अभिनय में डूबने लगता है और अभिनय की
आत्मा को समझने लगता है। इसीलिए ओशो ने कहा- "Acting is the most
spiritual profession and all spiritual persons are nothing but actors. The
whole earth is their stage, and the whole of life is nothing but a drama
enacted!"
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