Friday, 23 October 2020

क्या आप मास कम्युनिकेशन कॉलेज की तलाश में हैं?


इस ब्लॉग का टॉपिक आपको हेडलाइन देखते ही समझ आ गया होगा। आज इस ब्लॉग में हम बात करेंगे दिल्ली के कुछ best media college की, हम समझेंगे कि एक मास कम्युनिकेशन कॉलेज का चुनाव करते वक्त आपको किन किन चीज़ों का ध्यान रखना होगा। हम ये भी देखने और समझने की कोशिश करेंगे कि एक मास कम्युनिकेशन कॉलेज को क्या क्या चीज़ें इफेक्ट करती हैं।

 

मीडिया की पढ़ाई के दौरान आपको कई तरह के इंफ्रास्ट्रक्चर की ज़रूरत पड़ती है और अगर कोई बेस्ट मास कम्युनिकेशन कॉलेज है तो उनमें ये चीज़ें ज़रूर होंगी जैसे टैलिप्राम्प्टर(TP), अलग-अलग तरह के कैमरा, कम से कम एक कंप्यूटर लैब, एक फोटोग्राफी रूम और एप्पल के कंप्यूटर सिस्टम्स इत्यादि। इन सब चीज़ों के बिना कोई भी कॉलेज खुद को देश या दिल्ली का प्रीमियर मास कम्युनिकेशन इंस्टिट्यूट (Best Media Institute in Delhi) नहीं कह सकता।

 

प्लेसमेंट एक बहुत ही ज़रूरी चीज़ है मतलब कि इसके बिना आपकी डिग्री या आपकी पढ़ाई बेमानी है। कोई भी बेस्ट मीडिया कॉलेज (Best Media School) आपके डिग्री या डप्लोमा के बाद कम से कम इंटर्नशिप तो ज़रूर ही देता है। ये इंटर्नशिप किसी भी अच्छे संसथान में होनी चाहिए। एडमिशन लेते समय कॉलेज मैनेजमेंट से ये ज़रूर तय कर लें कि पढ़ाई के पूरी होने के बाद वे जॉब या इंटर्नशिप दिलाने में कितनी सहायता करेंगे। अगर आप दिल्ली के बेस्ट मीडिया इंस्टिट्यूट (Best Media Institute) में पढ़ाई कर रहे हैं तो ये चीज़ ज्यादा आसान हो सकती है क्यूंकि देशभर के सभी मीडिया संस्थानों के हेड ऑफिसेस यहीं दिल्ली में ही हैं।

 

जिस कॉलेज में भी आप एडमिशन ले रहे हों उसमें फैकल्टी कौन हैं और कैसे हैं इसका ख़ास ध्यान रखना चाहिए। मीडिया की पढ़ाई में फैकल्टी का अच्छा होना और उसका प्रोफाइल अच्छा होने भी बेहद मायने रखता है। मिसाल के तौर पर दिल्ली का ही एक मास कम्युनिकेशन कॉलेज है IAAN School of Mass Communication, उसमें फैकल्टी के नाम पर देश के तमाम बड़े संस्थानों से पढ़ाने आते है। सहारा समय के चैनल हेड और प्राइम टाइम एंकर भूपेश कोहली, दूरदर्शन के शुरूआती समय के न्यूज़ रीडर वेद प्रकाश और आज तक जैसे चैनल में भी काम करने वाले लोग इस इंस्टिट्यूट के फैकल्टी टीम का हिस्सा हैं।

 

मीडिया के फील्ड में अकादमिक पढ़ाई उतना मायने नहीं रखती जितना कि प्रैक्टिकल ट्रेनिंग मायने रखती है। रिपोर्टिंग की बारीकियां, लिखने के दौरान बरती जाने वाली सावधानियां, एंकरों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली लंतरानियां इत्यादि ये सब प्रैक्टिकल ट्रेनिंग का ही हिस्सा होती हैं। अकादमिक पढ़ाई के नाम पर भले आप कुछ भी रट लें जब आप फील्ड में काम करने जाएंगे तो वो काम नही आएँगी। इसीलिए किसी भी कॉलेज में एडमिशन लेते समय ख़ास ध्यान रखें कि प्रैक्टिकल ट्रेनिंग पर कितना ध्यान देते हैं।

 

तो ये थे महज़ कुछ पॉइंट्स जिनके माध्यम से मैंने आपको ये समझाने की कोशिश की कि अगर आप मीडिया कॉलेज में एडमिशन लेने जा रहे हैं या ऐसा सोच भी रहे हैं तो इन पॉइंट्स को दिमाग में रखिये। याद रखिये, कॉलेज आपकी ज़िन्दगी का वो ख़ास हिस्सा होता है जहाँ से आपकी ज़िन्दगी या तो बन ही जाती है या बिगड़ ही जाती है।

 

अग्रिम भविष्य के लिए शुभकामनाएं

अफ़ज़ाल अशरफ कमाल

IAAN

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